अतिथि देवो भव:

रीवा ज़िले के गोदहा ग्राम में ट्रान्स्प्लांटर द्वारा परिदृश्य परिवर्तन


लेखन: डॉ. चन्द्रजीत सिंह एवं डॉ.किंजल्क सी. सिंह
धान का ट्रान्स्प्लांटर  
ग्राम गोदहा में सोयाबीन की उत्पादकता और कम होता लाभांश निरंतर निराश कर रहा था और सोयाबीन की खेती घाटे का सौदा सिद्ध होती जा रहा थी,  जिसके फलस्वरूप एक समय के बाद किसान भाई-बहनों ने सोयाबीन  की खेती से मुँह मोड़ लिया था । खरीफ के मौसम में, अब खेत पड़ती पड़े थे और किसान आर्थिक हानि का शिकार हो रहे थे, किसानों का मन निरंतर असमंजस की स्थित का सामना कर रहा था और यह स्थिति धीरे-धीरे असन्तोष को उबाल दे रही थी ।
धान का खेत रोपाई उपरांत 
कृषि विज्ञान केन्द्र – रीवा ने इसी ग्राम, ज़िला रीवा के युवा अग्रणी कृषक श्री सुरेंद्र  कुमार वर्मा सुपुत्र श्री राम किशोर वर्मा, ग्राम गोदहा,ज़िला रीवा मोबाईल नम्बर: 09229505044 को चिन्हित किया जो इस समय अपने ग्राम में उत्पन्न असंतोष को दूर करने के बारे में सोच रहे थे । इसी क्रम में सुरेन्द्र ही ने धान की एस.आर.आई. पद्धति और इसके लाभ के बारे में सुना और चूँकि, क्षेत्र में, सोयाबीन के पूर्व धान की काश्त ही की जाती थी, आपने इस आधुनिक विधि से धान की खेती कर आर्थिक स्थिति में सुधार लाने का निर्णय लिया । गाँव में उपलब्ध  कृषि श्रमिक भी इस पहल लेकर उत्सुक थे क्योंकि सोयाबीन की बोनी की तुलना में धान की रोपाई, मानव श्रम पर अधिक निर्भर होती है । धान की खेती से गाँव में ही रोज़गार मिलने की आशा उनके मन में जाग उठी थी ।  एक चुनौ ती श्री वर्मा तथा श्रमिकों के समक्ष आ खड़ी हुई. श्रमिकों के पास रोपा लगाने की कुशलता तो थी किंतु  पुरानी विधि से । एस.आर.आई विधि से 
धान का रोपा 
रोपा लगाना उन्हें अटपटा लगता था तथा वे अकसर 12 से 14 दिन के रोपे को, रोपणी से बीज समेत नहीं निकाल पाते और शाम हो जाने पर रोपे को रात भर के लिये खेत पर ही छोड़ जाते, जिससे जड़ों को हवा लग जाती । जबकि, इस विधि में, पौधे को बीज सहित रोपणी से निकालने के 2 से 4 घंटे के भीतर ही खेत में रोपाई के निर्देश हैं. इसके अतिरिक्त, सम्हाल कर रोपाई न करने के कारण भी पौधे से बीज अलग हो हो जा रहा था. इन कारणों से पौधों को प्रारम्भिक काल में पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता और पौधों का विकास नहीं हो पाता जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता था. एस.आर.आई. विधि से अपेक्षित उत्पादक्ता न मिलने के कारण को सुरेन्द्र, एस.आर.आई. विधि के निर्देशों के पालन न कर पाने से जोड़ कर देख रहे थे । किंतु, बहुत प्रयासों के बाद भी वे किसानों की आदत और कुशलता में अपेक्षित 
श्री रामकुमार वर्मा एस.आर.आई विधि से 

तैयार धान के खेत में 

परिवर्तन नहीं ला पा रहे थे.  जिज्ञासावश, यूट्यूब देखते हुये सुरेन्द्र जी की नज़र धान के ट्रान्स्प्लान्टर की विडियो फिल्म पर पड़ी जिससे उनके मन में आशा की एक किरण जागी. पर्याप्त जानकारी एकत्रित करने के बाद इन्हें यह विश्वास जागा कि ट्रान्स्प्लांटर की सहायता से स्वयं तथा क्षेत्र की दुविधा को दूर किया जा सकता है. रीवा ज़िले में ट्रान्स्पांटर उपलब्ध न होने की स्थिति इनके हौसले को नहीं तोड़ पाई । इन्होंने बालाघाट से ट्रांस्प्लांटर  क्रय कर उपयोग का प्रशिक्षण लिया. इस यंत्र के द्वारा पौध से पौध की 3 से 9 इंच की दूरी तथा कतार से कतार 12 इंच तक की दूरी सुनिश्चित करना भी सीखा.  

सुरेन्द्र जी, प्रसन्नतापूर्वक कृषि विज्ञान केन्द्र -रीवा के वैज्ञानिक को बताते हैं कि पुरानी विधि से श्रमिकों द्वारा धान का रोपा  लगाने का प्रति एकड़ रु. 6000/- से 8000/-  का खर्च आता है जबकि धान ट्रांस्प्लांटर से एस.आर.आई. विधि से धान लगाने हेतु, वे रु. 6000/- प्रति एकड़ का खर्च आया तथा लागत लगभग रु. 2800 /- प्रति एकड़ आई, इस प्रकार प्रति एकड़  रु. 3200/- प्रति एकड़ हुई. वहीं बिना रोपे के मात्र ट्रान्स्प्लांटिंग हेतु रु. 3000/- की राशि किराये के तौर पर लिया, जिसमें लागत रु. 700/- प्रति एकड़ आई तथा लाभांश रु 2300/- प्रति एकड़ मिला. इस यंत्र से एक एकड़ खेत की रोपाई करने में लगभग 1.5 घंटे लगे. ट्रान्स्प्लांटर द्वारा पिछले दो वर्षों में कुल 95 एकड़ खेत में रोपाई की है । 
ग्राम गोदहा के एक और कृषक श्री भोलेश्वर प्रसाद शुक्ला जी ट्रांसप्लांटर के उपयोग और लाभ पर मुहर लगाते हुये बताते हैं – ‘मैने बड़े स्तर पर सोयाबीन की खेती की है किंतु निरंतर नुकसान उठाने के बाद मैने सोयाबीन की लगभग 25 एकड़ खेत में ट्रांस्प्लांटर से धान की रोपाई करवाई है, जिससे में पूरी तरह से संतुष्ट हूँ’.
एस.आर.आई पद्धति से ट्रान-स्प्लान्टर से बोया धान की फसल
के साथ उन्न्त्ततशील कृषक श्री सुरेन्द्र कुशवाहा  
ध्यान देने वाली बात यह है कि परम्परागत् विधि की रोपाई विधि से धान की उत्पादकता 20 से 22 क्विंट्ल प्रति एकड़ आती थी जिसका मूल्य रु. 44000/- प्रति एकड़ होता है, जबकि ट्रांस्प्लांटर की मदद से एस.आर.आई विधि से की गई काश्त से प्रति एकड़ उत्पादकता 30 से 32 क़्विंटल आई और अधिकतम उत्पादकता 35 क़्विंटल पाई गई है, जिसका मूल्य रु. 70,000/- प्रति एकड़ है. यदि दोनों विधियों की तुलना करें तो ट्रान्स्प्लांटर की सहायता से एस.आर.आई विधि से की गई रोपाई द्वारा तैयार धान से रु. 26,000/- प्रति एकड़ की आय अधिक पाई गई. धान ट्रान्स्प्लांटर की सफलता से प्रेरित होते हुये सुरेन्द्र जी बताते हैं कि यह यंत्र मानव चलित (वॉक एन्ड ड्राईव) है जो कि रु. 3,42,000/- की क्र्य की थी और इस यंत्र का पूर्ण भुगतान किया जा चुका है. अब धान के बढ़ते रकबे को देखते हुये मोटर चलित (राईड ऑन) धान ट्रान्स्प्लांटर क्रय करने का निर्णय लिया है, जिससे कम समय में अधिक से अधिक रोपाई का कार्य किया जा सकेगा.  ग्राम गोदहा के किसान भाई-बहन खरीफ के मौसम में सोयाबीन का विकल्प पा कर बहुत खुश हैं और सुरेन्द्र वर्मा जी को धन्यवाद देते हैं.
कृषि विज्ञान केन्द्र-रीवा ने श्री सुरेन्द्र वर्मा जी जैसे, जिज्ञासु, विचारशील तथा उन्नतशील कृषक को सम्मनित करने का निर्णय लिया है तथा साथ ही किसान समुदाय को उन्नत तकनीक से जोड़ने हेतु इनके प्रयासों और सफल परिणामों का प्रचार-प्रसार करने का उत्तरदायित्व भी लिया है.
आभार: डॉ. केवल सिंह बघेल, तकनीकी अफसर (पौध सुरक्षा), कृषि विज्ञान केन्द्र-रीवा (म.प्र.) श्रीमति आभा गौर, ए.टी.एम, सिरमौर, आत्मा परियोजना